आकाश में घिरे बादलों के बीच
मैंने कुछ रंगों सा देखा है
जैसे निचोड़ने पे सिर्फ़ पानी ही नहीं
भावनाएं भी उमड़ आई हैं
कुछ टपकती पारदर्शी संवेदनाएं हैं
कुछ प्रत्यक्ष होता, कौंधता संताप
जहाँ खुशियों की आंखें हर मौसम बिछती हैं
धनुक सा दिखता वह आशाओं का डगर है